क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।। | हिंदी कविता

"क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।। जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।। (read full poem in caption) ©पारूल चौधरी"

 क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।।
जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। 

और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।।

(read full poem in caption)

©पारूल चौधरी

क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।। जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।। (read full poem in caption) ©पारूल चौधरी

एक हादसा ही तो था,
फिर उस पर इतना बवाल क्यों ?
जो खामोशी से चला गया,
उसकी मौत पर कोई सवाल क्यों ?

क्यों फर्क पड़े हमें कि,
उसको क्या-क्या खला होगा ?
यूँ हवा में झूलने से पहले,

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