एक उलझी हुई किरदार हूं मैं,
शायद खुद की ही गुनाहगार हूं मैं।
मुद्दतों से ढूंढती हूं खुद को,
हर लम्हा एक नए सवाल की बौछार हूं मैं।
जिंदगी के इस उलझन भरे सफर में,
खुद से कभी दूर, कभी पासगार हूं मैं।
आशा की किरणें हैं बिखरी हुई,
फिर भी गहरे अंधेरों की साजगार हूं मैं।
खुशियों की परतों के नीचे छिपा दर्द,
हर हंसी में छुपा एक गहरा राज हूं मैं।
सोचती हूं, क्या सच्चाई है मेरी?
क्या सिर्फ एक कहानी की किरदार हूं मैं?
एक उलझी हुई किरदार हूं मैं,
शायद खुद की ही गुनाहगार हूं मै।
©Shivkumar barman
एक उलझी हुई #किरदार हूं मैं,
शायद खुद की ही #गुनाहगार हूं मैं।
मुद्दतों से #ढूंढती हूं खुद को,
हर लम्हा एक नए #सवाल की बौछार हूं मैं।
जिंदगी के इस #उलझन न भरे सफर में,
खुद से कभी दूर, कभी पासगार हूं मैं।
आशा की किरणें हैं #बिखरी हुई,