दिल मै सैकडो बोझ जब बढ़ जाते हैं तब हम बच्चे बन जाते हैं , और ढूंढ लेते हैं कोई एक कोना घर का जहा दुबक कर बैठने से सुकून मिलता है...
फिर सोचते हैं के जो चल रहा है चलने दो आगे की आगे सोची जायेगी,.... देखा जाएगा जो होगा सो ।
मुझे हमेशा ये लगता है की जब कुछ चीजे हमें अक्सर परेशान करती है तो हम उससे भागने की कोशिश करने लगते, लेकिन कुछ चीजों से भागने से हल नहीं निकलते और ना उनके सही हो जाने की कोई आशाएं रहती है ....
चाहें जितना भी चाह लो, कितना भी सोच लो, कितना भी खुद से लड़ लो ये अनचाहा दुख पता नहीं क्यूं खतम नहीं होता.... मुझे वो जगह ढूंढनी है मेरे मन के घर के अंदर जहां किसी कोने में मैं अगर दुबक कर भी बैठ जाऊं तो दिल से चाहती हूं कोई मुझे ढूंढने ना आए।
#विभुतनी
©तृष्णा
#Chalachal जीवन