बचपना मेरी बीत गई खेलते गोद में माँ बाप के आंगन ल | हिंदी Shayari

"बचपना मेरी बीत गई खेलते गोद में माँ बाप के आंगन लिखते-लिखते छूट गई हाथो से कलम दो पैसे कमाने के चक्कर में बीत रहा है ज़वानी से भरी ये सारा जीवन मैं करू अब कितना घिस घिस अपना ख्वाहिशे पूरी मुझपे ​​अब तो रहम कर ऐ खुदा और कितने लिखे हो मेरे किस्मत में ये मजबूरी ©TpK"

 बचपना मेरी बीत गई खेलते गोद में माँ बाप के आंगन
 लिखते-लिखते छूट गई हाथो से कलम
 दो पैसे कमाने के चक्कर में बीत रहा है 
ज़वानी से भरी ये सारा जीवन 
 मैं करू अब कितना घिस घिस अपना ख्वाहिशे पूरी
 मुझपे ​​अब तो रहम कर ऐ खुदा
 और
  कितने लिखे हो मेरे किस्मत में ये मजबूरी

©TpK

बचपना मेरी बीत गई खेलते गोद में माँ बाप के आंगन लिखते-लिखते छूट गई हाथो से कलम दो पैसे कमाने के चक्कर में बीत रहा है ज़वानी से भरी ये सारा जीवन मैं करू अब कितना घिस घिस अपना ख्वाहिशे पूरी मुझपे ​​अब तो रहम कर ऐ खुदा और कितने लिखे हो मेरे किस्मत में ये मजबूरी ©TpK

मजबूरी........🙂


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