चाय कुछ मिठास चीनी जैसी ज़ुबान में आती रहती है, मह | हिंदी Love

"चाय कुछ मिठास चीनी जैसी ज़ुबान में आती रहती है, महक इलायची की भाप बनकर उड़ती हुई तुम्हारी योदों की तरह आई। मौसम सुहाना और पानी की फुहारें बादलों की घड़घड़ाहट, खुशबू मिट्टी की सबकी मौजूदगी है यहाँ बस तुम नहीं हो। खाली कुर्सी छोड़कर रखी है मैंने किसी के लिए, उसका इंतजार है डायरी खुली हुई है कलम लिखने को बेकरार। एक गुफ़्तगू और कुछ मेरी नज़्म कहने सुनने आना, लिखना तुम खूबसूरत नज़रों की शरारत पर चाय की चुस्कियों के साथ। ©अनुज शुक्ल "अक्स""

 चाय

कुछ मिठास
चीनी जैसी ज़ुबान में
आती रहती है,
महक इलायची की 
भाप बनकर उड़ती हुई
तुम्हारी योदों की तरह आई।

मौसम सुहाना 
और पानी की फुहारें 
बादलों की घड़घड़ाहट,
खुशबू मिट्टी की
सबकी मौजूदगी है यहाँ
बस तुम नहीं हो।

खाली कुर्सी
छोड़कर रखी है मैंने
किसी के लिए,
उसका इंतजार है
डायरी खुली हुई है
कलम लिखने को बेकरार।

एक गुफ़्तगू 
और कुछ मेरी नज़्म 
कहने सुनने आना,
लिखना तुम खूबसूरत
नज़रों की शरारत पर
चाय की चुस्कियों के साथ।
©अनुज शुक्ल "अक्स"

चाय कुछ मिठास चीनी जैसी ज़ुबान में आती रहती है, महक इलायची की भाप बनकर उड़ती हुई तुम्हारी योदों की तरह आई। मौसम सुहाना और पानी की फुहारें बादलों की घड़घड़ाहट, खुशबू मिट्टी की सबकी मौजूदगी है यहाँ बस तुम नहीं हो। खाली कुर्सी छोड़कर रखी है मैंने किसी के लिए, उसका इंतजार है डायरी खुली हुई है कलम लिखने को बेकरार। एक गुफ़्तगू और कुछ मेरी नज़्म कहने सुनने आना, लिखना तुम खूबसूरत नज़रों की शरारत पर चाय की चुस्कियों के साथ। ©अनुज शुक्ल "अक्स"

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