अमर वीर वे, सैनिक !
जो भारत माता की रक्षा को
बर्फीली सरहद पर, डटे हुए
दुश्मन को मारें या ख़ुद ही मरते रहते
बलिदान ही अपना गर्व समझते
वे गढ़ते नहीं शौर्य की कविता
बल्कि,जी जाते हैं वे शौर्य की कविता,
वे,जो पथरीली धरती का सीना,
हल के फलों से,चीर चीर कर
बीज अंकुरित करते हैं
कविता कभी नहीं वे गढ़ते....
हर रोज़ परिश्रम की कविता वे जीते हैं,
हाँ,कविता गढ़ना बहुत सहज
पर काविता जी लेना, है मुश्किल
©tcp
कविता संग्रह