पृथ्वी
पृथ्वी तुम घूमती हो
तो घूमती चली जाती हो
अपने केंद्र पर घूमने के साथ ही
एक और केंद्र के चारों ओर घूमते हुए लगातार
क्या तुम्हें चक्कर नहीं आते
अपने आधे हिस्से में अंधेरा
और आधे में उजाला लिए
रात को दिन और दिन को रात करते
कभी-कभी कांपती हो
तो लगता है नष्ट कर दोगी अपना सारा घर बार
अपनी गृहस्थी के पेड़ पर्वत शहर नदी गांव टीले
सभी कुछ को नष्ट कर दोगी
पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो
तुम्हारी सतह पर कितना जल है
तुम्हारी सतह के नीचे भी जल ही है
लेकिन तुम्हारे गर्भ में
गर्भ के केंद्र में तो अग्नि है
सिर्फ अग्नि
पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो
कितने ताप कितने दबाव और कितनी आद्रता
अपने कोयलों को हीरो में बदल देती हो
किन प्रक्रियाओं से गुजर कर
कितने चुपचाप
रतन से ज्यादा रतन के रहस्य से
भरा है तुम्हारा ह्रदय
पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो
तुम घूमती हो
तो घूमती चली जाती हो
-नरेश सक्सेना
©gudiya
#NatureLove
पृथ्वी
पृथ्वी तुम घूमती हो
तो घूमती चली जाती हो
अपने केंद्र पर घूमने के साथ ही
एक और केंद्र के चारों ओर घूमते हुए लगातार