शीर्षक- सिर्फ मै और तुम..। जैसे चांद के संग चां

"शीर्षक- सिर्फ मै और तुम..। जैसे चांद के संग चांदनी, सांसों के सरगम। जैसे मधुकर फूलों पर, बांसुरी होंठो पर। वन में हिरन- हिरनी के साथ- साथ। शीतल- सा पानी पत्थर पर बहता, बुझाता होंठो के प्यास। जैसे धूप और छांव के मिलन, पतंग के साथ डोर। जैसे शाम और सवेरा, दूल्हा- दुल्हन का फेरा। तारो के रोशनी अम्बर पर, खिलता सुबह कमल। किसी सौंदर्य स्त्री के आंखो में, गाढ़ा- सा कज्जल। जैसे म्यान में तलवार चिपककर, सावन के झूला डाली पर। जैसे खुशबू उड़ते फूलों के हवाओं में, नर्तकी नृत्य करती बहारों में। बादल के साथ पानी, राजा- रानी के प्रेम कहानी। सुहाना मौसम के दृश्य, गोरे बदन पर चुनर होती रवानी। जैसे सुबह पत्ते पर ओस चिपकती है, गुनगुनाकर। जैसे वन में बल्लरी पेड़ों पर चिपक जाती, शर्माकर। मिलन होता है प्रेम रस के पूर्णिमा रातों में, गुमसुम होकर। शर्माती है कली सुबह- सुबह किरणे देखकर। जैसे दीया और बाती साथ- साथ, केश पर जूडा। जैसे पांव में घुंघरू खनक की आवाज साथ रहकर। बरसात की बूंदे गिर कर छिप ती जुल्फों पर, आसमां से गुजरती। नयन मिले संयोग से, छिप- छिपकर वो देखती। जैसे सागर किनारा उसपर बहता पानी, आहिस्ता- आहिस्ता। जैसे नरमी हाथ में कंगन खनकता हुआ, मीठी आवाज में। झूमते पेड़ के डाली उसपर बैठे तोता मैना, और उनकी कहानी। वैसे ही मैं और तुम, और मेरे प्यार की तुम दीवानी। लेखक/कवि- मनोज कुमार गोंडा जिला उत्तर प्रदेश संपर्क सूत्र- 7905940410 ©manoj kumar"

 शीर्षक-  सिर्फ मै और तुम..।


जैसे चांद के संग चांदनी, सांसों के सरगम।
जैसे मधुकर फूलों पर, बांसुरी होंठो पर।
वन में हिरन- हिरनी के साथ- साथ।
शीतल- सा पानी पत्थर पर बहता, बुझाता होंठो के प्यास।



जैसे धूप और छांव के मिलन, पतंग के साथ डोर।
जैसे शाम और सवेरा, दूल्हा- दुल्हन का फेरा।
तारो के रोशनी अम्बर पर, खिलता सुबह कमल।
किसी सौंदर्य स्त्री के आंखो में, गाढ़ा- सा कज्जल।


जैसे म्यान में तलवार चिपककर, सावन के झूला डाली पर।
जैसे खुशबू उड़ते फूलों के हवाओं में, नर्तकी नृत्य करती बहारों में।
बादल के साथ पानी, राजा- रानी के प्रेम कहानी।
सुहाना मौसम के दृश्य, गोरे बदन पर चुनर होती रवानी।


जैसे सुबह पत्ते पर ओस चिपकती है, गुनगुनाकर।
जैसे वन में बल्लरी पेड़ों पर चिपक जाती, शर्माकर।
मिलन होता है प्रेम रस के पूर्णिमा रातों में, गुमसुम होकर।
शर्माती है कली सुबह- सुबह किरणे देखकर।


जैसे दीया और बाती साथ- साथ, केश पर जूडा।
जैसे पांव में घुंघरू खनक की आवाज साथ रहकर।
बरसात की बूंदे गिर कर छिप ती जुल्फों पर, आसमां से गुजरती।
नयन मिले संयोग से, छिप- छिपकर वो देखती।


जैसे सागर किनारा उसपर बहता पानी, आहिस्ता- आहिस्ता।
जैसे नरमी हाथ में कंगन खनकता हुआ, मीठी आवाज में।
झूमते पेड़ के डाली उसपर बैठे तोता मैना, और उनकी कहानी।
वैसे ही मैं और तुम, और मेरे प्यार की तुम दीवानी।


लेखक/कवि- मनोज कुमार
 गोंडा जिला उत्तर प्रदेश
संपर्क सूत्र- 7905940410

©manoj kumar

शीर्षक- सिर्फ मै और तुम..। जैसे चांद के संग चांदनी, सांसों के सरगम। जैसे मधुकर फूलों पर, बांसुरी होंठो पर। वन में हिरन- हिरनी के साथ- साथ। शीतल- सा पानी पत्थर पर बहता, बुझाता होंठो के प्यास। जैसे धूप और छांव के मिलन, पतंग के साथ डोर। जैसे शाम और सवेरा, दूल्हा- दुल्हन का फेरा। तारो के रोशनी अम्बर पर, खिलता सुबह कमल। किसी सौंदर्य स्त्री के आंखो में, गाढ़ा- सा कज्जल। जैसे म्यान में तलवार चिपककर, सावन के झूला डाली पर। जैसे खुशबू उड़ते फूलों के हवाओं में, नर्तकी नृत्य करती बहारों में। बादल के साथ पानी, राजा- रानी के प्रेम कहानी। सुहाना मौसम के दृश्य, गोरे बदन पर चुनर होती रवानी। जैसे सुबह पत्ते पर ओस चिपकती है, गुनगुनाकर। जैसे वन में बल्लरी पेड़ों पर चिपक जाती, शर्माकर। मिलन होता है प्रेम रस के पूर्णिमा रातों में, गुमसुम होकर। शर्माती है कली सुबह- सुबह किरणे देखकर। जैसे दीया और बाती साथ- साथ, केश पर जूडा। जैसे पांव में घुंघरू खनक की आवाज साथ रहकर। बरसात की बूंदे गिर कर छिप ती जुल्फों पर, आसमां से गुजरती। नयन मिले संयोग से, छिप- छिपकर वो देखती। जैसे सागर किनारा उसपर बहता पानी, आहिस्ता- आहिस्ता। जैसे नरमी हाथ में कंगन खनकता हुआ, मीठी आवाज में। झूमते पेड़ के डाली उसपर बैठे तोता मैना, और उनकी कहानी। वैसे ही मैं और तुम, और मेरे प्यार की तुम दीवानी। लेखक/कवि- मनोज कुमार गोंडा जिला उत्तर प्रदेश संपर्क सूत्र- 7905940410 ©manoj kumar

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