बिकने लगा हूँ सस्ता भाव तुम्हारे शहर में जमाना दे | हिंदी कविता

"बिकने लगा हूँ सस्ता भाव तुम्हारे शहर में जमाना दे रहा सीने पर घाव तुम्हारे शहर में मैं तुम्हारे घर मिलने आऊँ तो कैसे आऊँ? तलवारों से काट देते पाँव तुम्हारे शहर में मेरी जान तुम अपनी चुनरी में ढक लेना मुझे मिलती नही अब पेड़ों की छाँव तुम्हारे शहर तुम पर भरोशा किया तो बदल मत जाना सुना होता रहता है बदलाव तुम्हारे शहर में हो अगर 'रजनीश' के तो बचाने आओगे ? लगा रहा हूँ जिंदगी का दाव तुम्हारे शहर में 🖋🖋दुर्गेश कुमार 'रजनीश' ©Durgesh kumar"

 बिकने लगा हूँ सस्ता भाव तुम्हारे शहर में
जमाना दे रहा सीने पर घाव तुम्हारे शहर में

मैं तुम्हारे घर मिलने आऊँ तो कैसे आऊँ?
तलवारों से काट देते पाँव तुम्हारे शहर में

मेरी जान तुम अपनी चुनरी में ढक लेना मुझे
मिलती नही अब पेड़ों की छाँव तुम्हारे शहर

तुम पर भरोशा किया तो बदल मत जाना
सुना होता रहता है बदलाव तुम्हारे शहर में

हो अगर 'रजनीश' के तो बचाने आओगे ?
लगा रहा हूँ जिंदगी का दाव तुम्हारे शहर में

🖋🖋दुर्गेश कुमार 'रजनीश'

©Durgesh kumar

बिकने लगा हूँ सस्ता भाव तुम्हारे शहर में जमाना दे रहा सीने पर घाव तुम्हारे शहर में मैं तुम्हारे घर मिलने आऊँ तो कैसे आऊँ? तलवारों से काट देते पाँव तुम्हारे शहर में मेरी जान तुम अपनी चुनरी में ढक लेना मुझे मिलती नही अब पेड़ों की छाँव तुम्हारे शहर तुम पर भरोशा किया तो बदल मत जाना सुना होता रहता है बदलाव तुम्हारे शहर में हो अगर 'रजनीश' के तो बचाने आओगे ? लगा रहा हूँ जिंदगी का दाव तुम्हारे शहर में 🖋🖋दुर्गेश कुमार 'रजनीश' ©Durgesh kumar

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