यूं चाहतें ख़त्म नहीं हुआ करते छोटी मोटी बातों पर रूठ जाने से,
तुम चाह कर भी ख़ुद को रोक नहीं सकते मेरे इश्क-ए-दरिया
में डूब जाने से,
सच ही तो है कि काँच कहां अपनी तासीर बदलता है कभी
टूट जाने से,
फिर तुम क्यों खुद को रोकते हो मुझसे दिल लगाने से ।।
©रोहित
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