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जब घडी आई दूर जाने की
जान निकल गई दीवाने की
सबसे छुपा रख्खा था हमने
लग गई क्यूँ नजर जमाने की
जाम नजरो से पीते थे हम भी
हमें आदत कहाँ मयखाने की
लग गया रोग इश्क का जब से
कोशिशें खूब हुई मिटाने की
जिन्द जहन्नुम हो गई तब भी
बरकरार है हँसी जमाने की
चल रही सांसे इस उम्मीद पे
अब खबर आई तेरे आने की
(लक्षमण दावानी जबलपुर✍️)
©laxman dawani
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