किसी पिता की दुलारी, किसी माँ की जान हूँ, कोई खिलौ | हिंदी कविता

"किसी पिता की दुलारी, किसी माँ की जान हूँ, कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !! किसी की बेटी बन कर आती हूँ, किसी की बहन कहलाती हूँ !! फिर एक दिन, अपना ही घर छोड़ कर, किसी की पत्नी बन जाती हूँ !! और भी बहुत से रूप है मेरे, जिनसे मैं अनजान हूँ, कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !! रामायण का अपहरण, महाभारत वस्त्रहरण !! कोई जगह महफूज़ नहीं, जहाँ मैं ले सकूं शरण !! ऐसी घिनौनी सोच से मैं, युगों युगों से परेशान हूँ, कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !! जली मैं दहेज़ के कारण कहीं, बनी किसी दरिन्दे का शिकार कभी !! पूजते रहे जो देवी बना कर लोगो के सामने, वो ही मेरे दुश्मन बन चुके है अभी !! झूठे बहसी लोगो के लिए मैं, खिलौना सा एक सामान हूँ, आज एक बार फिर बता दूं उन्हें, की मैं भी एक इंसान हूँ !! कभी झूठी मोहब्बत के नाम पर, कभी दफ्तर में, कभी काम पर !! जीने दे, ना लूट मुझे तू, न मुझको यूं बदनाम कर !! मत सोच की मैं लड़की हु तो, तेरे कदमो की गुलाम हूँ, कोई खिलौना नहीं तेरे हाथों की, मैं भी एक इंसान हूँ !! मत कर मेरी पूजा तू, मत बोल मैं देवी का रूप हूँ !! बस इतना सा कर दे करम, की सांस भर के जी सकूं !! मेरा रूप तेरे घर में भी है, तेरे घर की भी मैं शान हूँ, अब मान इस बात को तू, मैं तेरे जैसी इंसान हूँ…."

 किसी पिता की दुलारी, किसी माँ की जान हूँ,
कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !!

किसी की बेटी बन कर आती हूँ,
किसी की बहन कहलाती हूँ !!
फिर एक दिन, अपना ही घर छोड़ कर,
किसी की पत्नी बन जाती हूँ !!
और भी बहुत से रूप है मेरे,
जिनसे मैं अनजान हूँ,
कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !!

रामायण का अपहरण,
महाभारत वस्त्रहरण !!
कोई जगह महफूज़ नहीं,
जहाँ मैं ले सकूं शरण !!
ऐसी घिनौनी सोच से मैं,
युगों युगों से परेशान हूँ,
कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !!

जली मैं दहेज़ के कारण कहीं,
बनी किसी दरिन्दे का शिकार कभी !!
पूजते रहे जो देवी बना कर लोगो के सामने,
वो ही मेरे दुश्मन बन चुके है अभी !!
झूठे बहसी लोगो के लिए मैं,
खिलौना सा एक सामान हूँ,
आज एक बार फिर बता दूं उन्हें, की मैं भी एक इंसान हूँ !!

कभी झूठी मोहब्बत के नाम पर,
कभी दफ्तर में, कभी काम पर !!
जीने दे, ना लूट मुझे तू,
न मुझको यूं बदनाम कर !!
मत सोच की मैं लड़की हु तो,
तेरे कदमो की गुलाम हूँ,
कोई खिलौना नहीं तेरे हाथों की, मैं भी एक इंसान हूँ !!

मत कर मेरी पूजा तू,
मत बोल मैं देवी का रूप हूँ !!
बस इतना सा कर दे करम,
की सांस भर के जी सकूं !!
मेरा रूप तेरे घर में भी है,
तेरे घर की भी मैं शान हूँ,
अब मान इस बात को तू, मैं तेरे जैसी इंसान हूँ….

किसी पिता की दुलारी, किसी माँ की जान हूँ, कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !! किसी की बेटी बन कर आती हूँ, किसी की बहन कहलाती हूँ !! फिर एक दिन, अपना ही घर छोड़ कर, किसी की पत्नी बन जाती हूँ !! और भी बहुत से रूप है मेरे, जिनसे मैं अनजान हूँ, कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !! रामायण का अपहरण, महाभारत वस्त्रहरण !! कोई जगह महफूज़ नहीं, जहाँ मैं ले सकूं शरण !! ऐसी घिनौनी सोच से मैं, युगों युगों से परेशान हूँ, कोई खिलौना नहीं, मैं भी एक इंसान हूँ !! जली मैं दहेज़ के कारण कहीं, बनी किसी दरिन्दे का शिकार कभी !! पूजते रहे जो देवी बना कर लोगो के सामने, वो ही मेरे दुश्मन बन चुके है अभी !! झूठे बहसी लोगो के लिए मैं, खिलौना सा एक सामान हूँ, आज एक बार फिर बता दूं उन्हें, की मैं भी एक इंसान हूँ !! कभी झूठी मोहब्बत के नाम पर, कभी दफ्तर में, कभी काम पर !! जीने दे, ना लूट मुझे तू, न मुझको यूं बदनाम कर !! मत सोच की मैं लड़की हु तो, तेरे कदमो की गुलाम हूँ, कोई खिलौना नहीं तेरे हाथों की, मैं भी एक इंसान हूँ !! मत कर मेरी पूजा तू, मत बोल मैं देवी का रूप हूँ !! बस इतना सा कर दे करम, की सांस भर के जी सकूं !! मेरा रूप तेरे घर में भी है, तेरे घर की भी मैं शान हूँ, अब मान इस बात को तू, मैं तेरे जैसी इंसान हूँ….

मै भी एक इंसान हूँ.....

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