दो रोटी के लिए इंसान को बिकते देख लो अपने को अपनो | हिंदी कविता

"दो रोटी के लिए इंसान को बिकते देख लो अपने को अपनों से रोज दूर जाते देख लो पसीने से लथपथ खेतों में किसान हो जहां सावन को दूर दूर तक लापता देख लो। ©sanjaysaha Saha"

 दो रोटी के लिए इंसान को बिकते देख लो अपने को 
अपनों से रोज दूर जाते 
देख लो पसीने से 
लथपथ खेतों में 
किसान हो जहां 
सावन को दूर दूर 
तक लापता देख लो।

©sanjaysaha Saha

दो रोटी के लिए इंसान को बिकते देख लो अपने को अपनों से रोज दूर जाते देख लो पसीने से लथपथ खेतों में किसान हो जहां सावन को दूर दूर तक लापता देख लो। ©sanjaysaha Saha

# हिंदी कविता

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