तेरा इंतज़ार....भी कितना खलता है
निकले हो जब उम्मीदों के सफ़र पर
ढूंढने......चलोगे किसे यूं जहाँ तलक
पता है उसका दिल रहती है नज़र पर
मिलके बिछड़ना कुदरत का निजाम
आंख भर आई रुखसती के ख़बर पर
रिश्तों का कलेवा कभी चख तो लेते
फिर तजकिरा करते उसके असर पर
चिंगारियाँ उड़ रही आदतन लफ्जों से
धूल में ज़िंदगी और गुबार है शहर पर
एहसासों को नमकीन कर गया 'राही'
सूखते लम्हों में याद....आई कदर पर
©kumar ramesh rahi
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