ख़यालों को लफ़्ज़ों की पहचान देती है,
आज भी ग़ज़लें सुकून ओ इत्मिनान देती हैं!
हर शह महंगी हो गयी एहसास के इलावा,
बिसरे जज़्बातों को ये जायज़ मक़ाम देती है!
हर आंसूं पे रुसवा हो के जो ख़ामोश रह गया,
उस दिल ए बेज़ार को ये नये अरमान देती हैं!
आज जब नेकदिली ढूँढे नहीं मिलती कहीं,
इंसानियत को ये एक ताज़ा इमकान देती हैं!
मोहब्बत ने तो लोगों से लेनदेन से तौबा कर ली,
यही हैं जो हर दिल को इश्क़ का पैग़ाम देती हैं!
(इमकान - संभावना)
©Shubhro K
#World_Poetry_Day