बत्तियां जला दो अभी के अभी ये अँधेरा मेरी आँखों को | हिंदी शायरी

"बत्तियां जला दो अभी के अभी ये अँधेरा मेरी आँखों को चुभता है वो एक शख्स मुझसे इश्क़ करता है हर रात मुझे रुलाता है कुछ खुशिया है जो मेरे आँगन में चहकती बड़ी है एक ग़म है की मुझे अंदर ही अंदर सताता है अरमान एक सींचा था लाजवाब जिंदगी का हर शाम आफ़ताब के संग वो ढलता चला जा रहा है जिंदगी इतनी आसान नहीं “मुफ़लिस” अंगारे पर चलकर मुस्कुराना पड़ता है।। ©Prachi Ki Panktiyaan"

 बत्तियां जला दो अभी के अभी
ये अँधेरा मेरी आँखों को चुभता है

वो एक शख्स मुझसे इश्क़ करता है
हर रात मुझे रुलाता है

कुछ खुशिया है जो मेरे आँगन में चहकती बड़ी है 
एक ग़म है की मुझे अंदर ही अंदर सताता है

अरमान एक सींचा था लाजवाब जिंदगी का 
हर शाम आफ़ताब के संग वो ढलता चला जा रहा है

जिंदगी इतनी आसान नहीं  “मुफ़लिस” 
अंगारे पर चलकर मुस्कुराना पड़ता है।।

©Prachi Ki Panktiyaan

बत्तियां जला दो अभी के अभी ये अँधेरा मेरी आँखों को चुभता है वो एक शख्स मुझसे इश्क़ करता है हर रात मुझे रुलाता है कुछ खुशिया है जो मेरे आँगन में चहकती बड़ी है एक ग़म है की मुझे अंदर ही अंदर सताता है अरमान एक सींचा था लाजवाब जिंदगी का हर शाम आफ़ताब के संग वो ढलता चला जा रहा है जिंदगी इतनी आसान नहीं “मुफ़लिस” अंगारे पर चलकर मुस्कुराना पड़ता है।। ©Prachi Ki Panktiyaan

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