सब रंग उतर गए है ज़िंदगी से
पहले जैसी अब कोई बात नहीं लगती।
ज़िंदगी है तो साथ मेरे
मगर अब ज़िंदगी साथ नहीं लगती।
ना जाने किसकी बद्दुआ लगी है
की कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
किसी भी शख़्स को मान लूँ अपना
मगर वो शख़्स अपना नहीं लगता।
क्या ही रौनक़ क्या ही मीठा
सब कुछ तो फीका फीका है।
ज़िंदगी ने तुमसे भी सींचा है ये सब
या बस मेरा ही भाग्य अनूठा है।
©बेजुबान शायर shivkumar
सब रंग उतर गए है #ज़िंदगी से
पहले जैसी अब कोई बात नहीं लगती।
ज़िंदगी है तो साथ मेरे
मगर अब ज़िंदगी साथ नहीं लगती।
ना जाने किसकी बद्दुआ लगी है
की कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
किसी भी शख़्स को मान लूँ अपना