सच ही, मैं देखता हूं
तुम्हारे बिना साथ बीते
लम्हों का हिसाब भी तो
सिमट आता है इन्हीं चंद उंगलियों में
पर उन लम्हों में सिमटा एहसास
मेरे मन के रेतीले मैदान पर
अक्सरहां उठा करता है लहरों की तरह
और
इनके पीछे छूटी निशानों को
समेटने की कवायद में
हथेलियां मेरी
करती हासिल...
फक़त ....रेत ही रेत!!
- ' मानस प्रत्यय '
©river_of_thoughts
#mohabbat