धर्मोपदेश सभाभवन के भित्ति में खो गये शुचिता अब कव | हिंदी कविता

"धर्मोपदेश सभाभवन के भित्ति में खो गये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये अब हर तरफ लगते यहाँ बाड़ में मेले होड़ लगी बेलन की चाहे पूड़ी ही बेले कौन सुने की कहें यहाँ खाक होते दीये शुचिता अब कविता की नीतिमें खो गये तीर बहुत है दुनियाँ के तरकश में भी यहाँ जाये तो जाये अब मानव बचकर भी कहाँ जुल्म करते करते वो बड़े से बड़ा हो गये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये मौन रहे कैसे यहाँ भारत भू देती शिक्षा अर्थ हो दण्ड जहाँ तो रति दया तितिक्षा कोई नहीं शिवसा यहाँ जग का गरल पीये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये युग रीते कहते यहाँ कोई हमारे न हुये जग को भाये ही कब हो निराला प्रिये चाह सघन यहाँ अब बाड़ी से हो गये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये 🤔 धन्यवाद🙏 ___संजय निराला✍ ©संजय निराला "

 धर्मोपदेश सभाभवन के भित्ति में खो गये
शुचिता अब कविता की नीति में खो गये

अब हर तरफ लगते यहाँ बाड़ में मेले
होड़ लगी बेलन की चाहे पूड़ी ही बेले
कौन सुने की कहें यहाँ खाक होते दीये
शुचिता अब कविता की नीतिमें खो गये

तीर बहुत है दुनियाँ के तरकश में भी यहाँ
जाये तो जाये अब मानव बचकर भी कहाँ
जुल्म करते करते वो बड़े से बड़ा हो गये
शुचिता अब कविता की नीति में खो गये

मौन रहे कैसे यहाँ भारत भू देती शिक्षा
अर्थ हो दण्ड जहाँ तो रति दया तितिक्षा
कोई नहीं शिवसा यहाँ जग का गरल पीये
शुचिता अब कविता की नीति में खो गये

युग रीते कहते यहाँ कोई हमारे न हुये
जग को भाये ही कब हो निराला प्रिये
चाह सघन यहाँ अब बाड़ी से हो गये
शुचिता अब कविता की नीति में खो गये 🤔
धन्यवाद🙏
           ___संजय निराला✍

©संजय निराला

धर्मोपदेश सभाभवन के भित्ति में खो गये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये अब हर तरफ लगते यहाँ बाड़ में मेले होड़ लगी बेलन की चाहे पूड़ी ही बेले कौन सुने की कहें यहाँ खाक होते दीये शुचिता अब कविता की नीतिमें खो गये तीर बहुत है दुनियाँ के तरकश में भी यहाँ जाये तो जाये अब मानव बचकर भी कहाँ जुल्म करते करते वो बड़े से बड़ा हो गये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये मौन रहे कैसे यहाँ भारत भू देती शिक्षा अर्थ हो दण्ड जहाँ तो रति दया तितिक्षा कोई नहीं शिवसा यहाँ जग का गरल पीये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये युग रीते कहते यहाँ कोई हमारे न हुये जग को भाये ही कब हो निराला प्रिये चाह सघन यहाँ अब बाड़ी से हो गये शुचिता अब कविता की नीति में खो गये 🤔 धन्यवाद🙏 ___संजय निराला✍ ©संजय निराला

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