कभी बादल की तरह बरसती हो तुम,
और कभी ओस की बूंदों की तरह ठहर जाती हो,
कभी खुद को समेट लेती हो किसी कुकुन की तरह,
तो कभी खुली आजादी में जीना चाहती हो,
ऐसा क्या है? तुम्हारे अंदर, तुम किसी और में नहीं समा पाती हो,
क्या? तुम आज वही हो जो बचपन में खिल खिलाकर हसा करती थी,
बारिश मैं नहाने को बचपन में मां के आगे मचला करती थी,
क्या तुम वही हो, वही छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी गुड़िया,
जो हमेशा प्यार को अपने अंदर समेटे हुए रहा करती थी,
माना की मुश्किल हालात है अभी, तुम खुद से भी डर रही हो,
लेकिन देखो! अपनी आंखो को बंद करके बहुत कुछ समाया है तुम्हारे अंदर,
काबिल हो तुम तभी तो खुदको यू पहचानने का हुनर भी तुमने ही पाया है,
दूर से रोशनी की किरन अब दिखाई दे रही है, उम्मीदों का सवेरा फिर नजर आया है,
अभी थको मत! तुम वही हो जो अपनी आंखो से,
इस पूरी दुनिया को एक नया सवेरा दिखाएगी,
तो बताओ? वही हो ना तुम,, जो जिंदगी को पाने के लिए ,
अपने मुश्किल हालातो से भी लड़ जाएगी।
~सोनाक्षी गुप्ता
©writer_munmunGupta
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