कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कु | हिंदी शायरी

"कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है , वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ , दो किनारो की तरह हम , हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा होता है .... चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं , ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा , जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी सागर होने की उम्मीद , सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ... ©Monika Suman"

 कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है  ,
याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है ,
वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ ,
दो किनारो की तरह हम ,
हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा  होता है ....
चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं ,
ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा ,
जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी   सागर होने की उम्मीद ,
सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ...

©Monika Suman

कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है , वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ , दो किनारो की तरह हम , हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा होता है .... चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं , ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा , जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी सागर होने की उम्मीद , सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ... ©Monika Suman

कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है ,
याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है ,
वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ ,
दो किनारो की तरह हम ,
हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा होता है ....
चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं ,
ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा ,
जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी सागर होने की उम्मीद ,

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