रिश्ता नहीं था खून क़े फिर भी अपने लगते है आधार क | हिंदी कविता

"रिश्ता नहीं था खून क़े फिर भी अपने लगते है आधार कार्ड उनके भी है जो सिंघु पर मरते है.. जितने घरो में सोए रहें, उनसे पूछ कर आओ कितनी मौतों पर जागो गे उतने एक बार में मर जाऊ.. खून के धब्बे दीखते है इस हरे रंग पर मुझको, इसकी जगह अब लाल को सबसे निचे रंगवादो .. हरा रंग किसानी का, झंडे से अब हटादो ... हरा रंग किसानी का, झंडे से अब हटादो ... बुराई पर जीत की, वो कहानी पुराणी है किस मुँह से पूछो उस माँ से, क्या इस बार दिवाली मनानी है Black diwali#kisanekta ©Aagyaat"

 रिश्ता नहीं था खून क़े 
फिर भी अपने लगते है 
आधार कार्ड उनके भी है 
जो सिंघु पर मरते है..


जितने  घरो में सोए रहें,
उनसे पूछ कर आओ 
कितनी मौतों पर जागो गे 
उतने एक बार में मर जाऊ..


 खून के धब्बे दीखते है इस हरे रंग पर मुझको, इसकी जगह अब लाल को सबसे  निचे
     रंगवादो ..

हरा रंग किसानी का, झंडे से अब हटादो  ...
हरा रंग किसानी का, झंडे से अब हटादो  ...


बुराई पर जीत की, वो कहानी पुराणी है 
किस मुँह से पूछो उस माँ से, 
क्या इस बार दिवाली मनानी है

Black diwali#kisanekta

©Aagyaat

रिश्ता नहीं था खून क़े फिर भी अपने लगते है आधार कार्ड उनके भी है जो सिंघु पर मरते है.. जितने घरो में सोए रहें, उनसे पूछ कर आओ कितनी मौतों पर जागो गे उतने एक बार में मर जाऊ.. खून के धब्बे दीखते है इस हरे रंग पर मुझको, इसकी जगह अब लाल को सबसे निचे रंगवादो .. हरा रंग किसानी का, झंडे से अब हटादो ... हरा रंग किसानी का, झंडे से अब हटादो ... बुराई पर जीत की, वो कहानी पुराणी है किस मुँह से पूछो उस माँ से, क्या इस बार दिवाली मनानी है Black diwali#kisanekta ©Aagyaat

#kisanekta
#blackdiwali

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