कॉलेज की प्रथम सीट
पहली पंक्ति में हूं,
फिर भी खाली रहती हूं
अध्यापक के समक्ष
फिर भी सुनसान रहती हूं
शांति से भागने का मन करता है,
पीछे चल रही चहल पहल से मन मचलता है
पहली होकर भी
इतना अकेलापन खटकता है
पीछे देखती हूं,तो मायूस हो जाती हूं
नदी किनारे सन्नाटा
रेगिस्तान में खुशहाली देखकर
मदहोश हो जाती हूं
स्वप्न में, गरिमामयी समय याद आता है
वर्तमान में भूतकाल का बोध कराता है
भविष्य का अनिश्चित होना
दिमाग में तनाव डाल जाता है
हर समय ऐसा एहसास,
मेरे मन को खा जाता है
क्या करूं , बस विलाप याद आता है
खुद को हारा हुआ महसूस कराता है
इस अंधकार में भी, सूरज की किरणों सा प्रकाश
समय समय पर मेरा डूबा आत्मविश्वास जगा ही जाता है
जब अच्छा अध्यापक आता है, तब मेरे गलियारे में भी रौनक लाता है
यह मुझे, हमेशा अच्छे सोच के साथ जीने की सीख दे जाता है
©Hitesh Ahuja
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