"इन आँखों में भी एक ख़्वाब पल बैठा,
जिस चाहत से था इंकार,
ख़्याल बन वो आज मचल बैठा!
सुना करते थे डूबकर हम भी मोहब्बत के किस्से,
हक़ीक़त बन हमारा ही किस्सा चल बैठा!
दर्द-ए-समुंदर में डूबना लाजिमी था,
प्रेम की लहरों में पाँव जो फिसल बैठा!
हवाओं का रुख हम क्या मोड़ते,