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*नहीं है चैन किसी को नए ज़माने में,*
*हमें सुकून है अपने ग़रीब - ख़ाने में..!!*
*किसी के पास नहीं वक़्त सुनेगा कौन मेरी,*
*हर एक शख़्स फ़ँसा है कमाने-खाने में..!!*
*भले फ़क़ीर हूँ दौलत है पास ग़ज़लों की,*
*सिवा ग़ज़ल के न कुछ है मेरे ख़ज़ाने में..!!*
*मेरी तो आँखों के आँसू भी अब तो सूख गए,*
*कसर न छोड़ी थी तुमने मुझे रुलाने में..!!*
*सही कहा था के गिरते को थाम ले साक़ी,*
*मज़ा तो है किसी गिरते को फिर उठाने में..!!*
*किये थे लाख जतन घर नहीं बना मुझ से,*
*तुम्हारा हाथ है घर को चमन बनाने में..!!*
*तुम्हे भुला दूँ मैं कैसे बड़ा ये मुश्किल है,*
*तुम्हारा नाम है शामिल मेरे फ़साने में..!!*
©KRISHNA
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