मेरी चाह ओर मेरी राह वो निला सा आसमान जिसकी न कोई | हिंदी कविता

"मेरी चाह ओर मेरी राह वो निला सा आसमान जिसकी न कोई चाह हैं। ना बड़ा कोई अरमान।। जीने कि वजह देखता नहीं जीने का कारण सोचता नहीं लालच का कोई मोल नहीं। खुशी व गम का कोई तोल नहीं ।। मतलब के रीशते हें यहां लेकिन इन सब से मतलब नहीं गुरु यहाँ अनेक हैं । लेकिन में किसी का चेला नहीं ।। दिल की कीमत भुल गये सब पेसो मे झुल गये जो सब अपने केहलाते थे। आज अंधेरो में दुब गये।। एक झूठ पे सो सवार सच्चाई से शहर गवार आज सब कि ज़बान एक हैं । पैसा हैं तो सेठ हैं , जनाब।।"

 मेरी चाह ओर मेरी राह
वो निला सा आसमान
जिसकी न कोई चाह हैं।
ना बड़ा कोई अरमान।।

जीने कि वजह देखता नहीं
जीने का कारण सोचता नहीं
लालच का कोई मोल नहीं।
खुशी व गम का कोई तोल नहीं ।।

मतलब के रीशते हें यहां
लेकिन इन सब से मतलब नहीं
गुरु यहाँ अनेक हैं ।
लेकिन में किसी का चेला नहीं ।।

दिल की कीमत भुल गये
सब पेसो मे झुल गये
जो सब अपने केहलाते थे।
आज अंधेरो में दुब गये।।

एक झूठ पे सो सवार
सच्चाई से शहर गवार
आज सब कि ज़बान एक हैं ।
पैसा हैं तो सेठ हैं , जनाब।।

मेरी चाह ओर मेरी राह वो निला सा आसमान जिसकी न कोई चाह हैं। ना बड़ा कोई अरमान।। जीने कि वजह देखता नहीं जीने का कारण सोचता नहीं लालच का कोई मोल नहीं। खुशी व गम का कोई तोल नहीं ।। मतलब के रीशते हें यहां लेकिन इन सब से मतलब नहीं गुरु यहाँ अनेक हैं । लेकिन में किसी का चेला नहीं ।। दिल की कीमत भुल गये सब पेसो मे झुल गये जो सब अपने केहलाते थे। आज अंधेरो में दुब गये।। एक झूठ पे सो सवार सच्चाई से शहर गवार आज सब कि ज़बान एक हैं । पैसा हैं तो सेठ हैं , जनाब।।

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