साहब!! पैसे दे दो कहो तो कर दूँ कोई काज
चार पहर बीत गए पर गले से गया न थोड़ा नाज।
कल माँ लायी तो मजूरी से पैसे, पर बापू नशे बिन रह न सके
ऐसे तो न देती माँ पर छुटकी का डर वो सह न सके।
पोंछा यहाँ लगा दूँ या तुमको चाय बन दूँ मैं
कहो तो पाँव दबा दूँ या फिर जूतों को चमका दूँ मैं।
साहब! वो जो अंदर बैठा माँ कहती हैं, है दोस्त मेरा
मिला नहीं मैं उससे पर माँ कहती है, वो सदा ही मेरे साथ चला।
आप डरो मत!! जब मिलूंगा कह दूंगा, उसका एक दूध का लोटा मैंने पिया
वो नाराज न होगा, माँ कहती है दिल का है वो बहुत बड़ा।
पर साहब…. कुछ खाने दे दो, घर बहना राह बाट रही
सहमी चुप सी बैठी होगी बस भाई से उसको आस रही।
अगर उदर अगन न मिट पाएगी तो आज रात भयावह आएगी
भूखे शूलों की शय्या पर तो आज काम कहानी भी ना आएगी।
साहब!! इस भीषण दहक में अब और बड़ा न जाएगा
अभी देर हुई तो फिर शायद अगला सूर्योदय न आएगा।