बीज ज़ब खुद टूट बिखर जाती है..
पानी, मिट्टी, हवा के वेग से...
तब सृजित करती है
नवीन बेला..
प्रकृति के विषम परिस्थितियों को
विद्रिन कर..
रचती है अपने जैसे हज़ारों..
यही जीवन चक्र है.
प्रारम्भ ही अंत
और.. अंत ही प्रारम्भ है...
©sudha sinha
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