इश्क़ के आलम में वस्ल की चाहत है
तेरे मुखातिब होने से मेरे दिल को राहत है
वस्ल की चाहत में एक अरसा गुज़र गया
दौर ए वस्ल ए यार की चाहत भी इबादत है
मेरी हर्फ ए वफ़ा में बस ज़िक्र तुम्हारा है
तू है जो तकदीर मेरा खुदा की इनायत है
लग रहा जैसे कब के दो बिछड़े मिलेंगे
एक नज़र देखकर दिल में भरने की चाहत है
तेरी उल्फत पे यकीं मुझको न वादे की चाहत है
ना चांद तारे मुझको तो बस तेरी बाहों में राहत है।
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