नासमझ इंसान उसी प्रकृति को पहुंँचा रहा हानि जिससे बंधी हमारी जीवन डोर,
मांँ समान प्रेम लुटाती यह प्रकृति इतना कुछ देती है हमें, जिसका नहीं कोई छोर,
कभी सोचा है प्रकृति से गर यूंँ ही होता रहा खिलवाड़ तो हमारा भविष्य क्या होगा,
प्राणदायिनी प्रकृति ही न रही तो आने वाली पीढ़ी के जीवन का रूप कैसा होगा।
©Mili Saha
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