।।दहेज।।
जिस प्रथा ने हैं समाज को खाया,
समाज ने उसी को हैं सर का ताज बनाया।
यूं तो लोग बड़ी बडी बात करते है,
दहेज के खिलाफ ना जाने क्या क्या कहते हैं।
पर बात जब खुद के बेटे को आती हैं,
तब दहेज को ही अपना हथियार बनाते हैं।
बातें तो हमेशा खुद्दारो वाली करते हैं,
लेकिन नियत हमेशा भिकारियो वाली रखते हैं।
अरे!वो क्या रखेंगे अपने बहुओं को खुश,
जिसने दहेज की लालच में बेटे का घर हैं बसाया।
कहने को तो समाज कहां से कहां चला आया,
लेकिन आज भी दहेज को हमेशा के लिए कोई खतम ना कर पाया।
©Soumyashree Satapathy
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