पत्तियां टूटती हैं, पैरों तले रौंदी जाती हैं।
कौन पूछता है उनसे बसंत का हाल ?
या की कैसा था पतझड़ का काल ?
वो तो हरापन लूटा कर हार गई, सो सुख गई।
लकीरों से उसकी एक कहानी चूक गई।।
©गीतेय...
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