पत्तियां टूटती हैं, पैरों तले रौंदी जाती हैं। कौन | हिंदी कविता

"पत्तियां टूटती हैं, पैरों तले रौंदी जाती हैं। कौन पूछता है उनसे बसंत का हाल ? या की कैसा था पतझड़ का काल ? वो तो हरापन लूटा कर हार गई, सो सुख गई। लकीरों से उसकी एक कहानी चूक गई।। ©गीतेय..."

 पत्तियां टूटती हैं, पैरों तले रौंदी जाती हैं।
कौन पूछता है उनसे बसंत का हाल ?
या की कैसा था पतझड़ का काल ?

वो तो हरापन लूटा कर हार गई, सो सुख गई।
लकीरों से उसकी एक कहानी चूक गई।।

©गीतेय...

पत्तियां टूटती हैं, पैरों तले रौंदी जाती हैं। कौन पूछता है उनसे बसंत का हाल ? या की कैसा था पतझड़ का काल ? वो तो हरापन लूटा कर हार गई, सो सुख गई। लकीरों से उसकी एक कहानी चूक गई।। ©गीतेय...

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