ऐ मेरे इश्क़ की CPC,
तेरी decree अब void ab intio रही,
मेरा मर्ज़ execution का था,
पर फ़िर भी तुमने resjudicata कही,
जिसे तुम cause of action बता रही,
वो मेरे दिल के jurisdiction में आता नहीं,
बेशक तुम्हारा plaint return हो जाए,
जब दुआओं की हम amendment ले आएँ!
माना हक़ है restitution का,
पर तुम भूल गए earlier stage पे,
तुमने जो दर्द के damage दिए,
इश्क़ के mesne profits के साथ,
वैसे तो वादी था defendant बन आया हूँ,
तुम suits लगा लो क़समों के,
मैं वादों का written statement लाऊँगा,
मैं तो हूँ decree holder,
तुम्हें judgement debtor कह तड़पाउँगा,
Review, referemce या revision तुम ले आना,
अपना opposite party मुझे ही पाना!
क्या अब भी appeal बाकी है?
ऐ मेरे इश्क़ की CPC!
✍ vivek singh subir