White बिखरते रहे टुकड़े जिगर के सिसकती रही नज़दीक | हिंदी Shayari

"White बिखरते रहे टुकड़े जिगर के सिसकती रही नज़दीकियाँ गालों पर बनके बुंदे टपकती रही; छोड़कर निशाँ खारेपन के खुशियाँ गमो में सिमटती रही...!!! ✍️✍️murtaza ©Murtaza Ali"

 White बिखरते रहे टुकड़े  जिगर के
सिसकती रही नज़दीकियाँ
गालों  पर बनके बुंदे
टपकती रही;
 छोड़कर निशाँ खारेपन के
खुशियाँ गमो में सिमटती रही...!!!
✍️✍️murtaza

©Murtaza Ali

White बिखरते रहे टुकड़े जिगर के सिसकती रही नज़दीकियाँ गालों पर बनके बुंदे टपकती रही; छोड़कर निशाँ खारेपन के खुशियाँ गमो में सिमटती रही...!!! ✍️✍️murtaza ©Murtaza Ali

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