White कभी मिलो तो डर न जाना, अहंकार से ऊंचे शिखर प | हिंदी Shayari

"White कभी मिलो तो डर न जाना, अहंकार से ऊंचे शिखर पर बैठे, जब पाओगे खुद को अकेले, कर्मों के वेग से सहम न जाना। लावा के उबाल को थामे, कंकर फेक मुसकान यूं बांधे , टूट जाए आत्मजवाला के घेरे , कांपे मन, इंद्रियां छोड़ ये मेले, साथ ढूंढते पथभ्रष्ट न जाना। भूमि को चोट से सींचे दरारों को स्वार्थ में खींचे कोलाहल में बीज ये बिखरे, विषधर से संभल जाना, कभी मिलो तो डर न जाना।। ©Vishal Pandey"

 White कभी मिलो तो डर न जाना,
अहंकार से ऊंचे शिखर पर बैठे,

जब पाओगे खुद को अकेले,
कर्मों के वेग से सहम न जाना।

लावा के उबाल को थामे,
कंकर फेक मुसकान यूं बांधे ,

टूट जाए आत्मजवाला के घेरे ,
कांपे मन, इंद्रियां छोड़ ये मेले,
साथ ढूंढते  पथभ्रष्ट  न जाना।

भूमि को चोट से सींचे
दरारों को स्वार्थ में खींचे

कोलाहल में बीज ये बिखरे,
विषधर से संभल जाना,
कभी मिलो तो डर न जाना।।

©Vishal Pandey

White कभी मिलो तो डर न जाना, अहंकार से ऊंचे शिखर पर बैठे, जब पाओगे खुद को अकेले, कर्मों के वेग से सहम न जाना। लावा के उबाल को थामे, कंकर फेक मुसकान यूं बांधे , टूट जाए आत्मजवाला के घेरे , कांपे मन, इंद्रियां छोड़ ये मेले, साथ ढूंढते पथभ्रष्ट न जाना। भूमि को चोट से सींचे दरारों को स्वार्थ में खींचे कोलाहल में बीज ये बिखरे, विषधर से संभल जाना, कभी मिलो तो डर न जाना।। ©Vishal Pandey

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