अंधेरी रातों में! भटकना बाकी है, तड़पना बाकी है, म | हिंदी शायरी

"अंधेरी रातों में! भटकना बाकी है, तड़पना बाकी है, मचलना बाकी है। छत की सीढियों से, दिल की दीवार से उछलना बाकी है।। समेट लेता हु यादों को दिल में। कमबख्त इजहार अभी बाकी है।। अंधेरी रातों में! भटकना बाकी है।। ©Raviraaj"

 अंधेरी रातों में!
भटकना बाकी है,
तड़पना बाकी है,
मचलना बाकी है।
छत की सीढियों से,
दिल की दीवार से
उछलना बाकी है।।
समेट लेता हु यादों को दिल में। 
 कमबख्त इजहार अभी बाकी है।।
अंधेरी रातों में!
भटकना बाकी है।।

©Raviraaj

अंधेरी रातों में! भटकना बाकी है, तड़पना बाकी है, मचलना बाकी है। छत की सीढियों से, दिल की दीवार से उछलना बाकी है।। समेट लेता हु यादों को दिल में। कमबख्त इजहार अभी बाकी है।। अंधेरी रातों में! भटकना बाकी है।। ©Raviraaj

#इजहार बाकी है।

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