वक्त लगता है
एक दूसरे की आदतों को समझने में
आदतों को समझ कर उसमे ढलने में
एक अनजान शख्स को दिल से अपना कहने में
वक्त लगता है
बचपन में बार बार गिरकर संभल कर चलने में
ठोकर खाकर वापस किसी को समझने में
अपने और पराए का मतलब समझने में
वक्त लगता है
बारिश के बादल छटकर सूरज निकलने में
तूफान के साथ आई तबाही से उबरने में
हिम्मत जुटाकर वापस संभलने में
वक्त लगता है
जख्मों को भरने में
नादानी में की गई गलतियों को समझने में
टेढ़े मेढे रास्तों पे चलकर आगे बढ़ने में
शुरुआत में तो हर सख्श को भी वक्त लगता है ये समझने में की "वक्त को भी वक्त लगता है बदलने में"
©Priya's poetry life
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