रात के घने अंधेरे में,
एक साया सा देखा मैने
गर्मी की रात में
एक साया सा देखा मैने
हो रही थी बेचैनी जब
हवा के तलाश में गई छत में तब
घूम रही थी छत पर
गाना सुनते सुनते
रात के घने अंधेरे में,
एक साया सा देखा मैने
समझाया मैने खुद को
अंधेरे में सारी आकृति लगती है भयानक
हवा के कारण हिल रहा था वो साया
कौन जाने क्या थी उसकी माया
अचानक चमगादड़ की आवाज से
अन्दर से कांप गई थी मैं
कुत्तों की रोने की आवाज
और छमछम की डरावनी ध्वनि
याद मुझे दिला रही थी
भूतिया सी एक फिल्म की
सब जीवंत हो रहा था
मेरा मन अंदर से रो रहा था
दो रास्ते थे मेरे पास अभी
भूल कर सब वही रहूं या छिप जाऊ कही
गिरते भागते कमरे में आई मैं
चादर तान के लेट गई थी मैं
गर्मी में हो रही थी हालत खराब
लेकिन डर से बचना भी थी जनाब
पंखे के हवे में हिल रहा था कैलेंडर
लग रहा था चल रहा कोई सरक सरक कर
हिम्मत ना थी देखूं चादर के बाहर
हनुमान जी को याद कर रही थी मैं रात भर
हनुमान जी आज बचालो
नही जाऊंगी इतनी रात में कसम खिलालो
कभी न आए वो रात फिर से
मैने देखा था साया जब छत से
भुलाए नहीं भूलती वो रात घने अंधेरे में
जब एक साया सा देखा था मैंने।।।।
©Sheetal
#horror #real_story