बिखरे हुए से अंधेरे हैं मुझमें, ऐसी रातों को तुम अ | हिंदी Poetry

"बिखरे हुए से अंधेरे हैं मुझमें, ऐसी रातों को तुम अपनाओगे क्या? अक्सर खयालों से बेचैन रहती हूँ, हाथ थामकर गले लगाओगे क्या? ©amrit"

 बिखरे हुए से अंधेरे हैं मुझमें,
ऐसी रातों को तुम अपनाओगे क्या?
अक्सर खयालों से बेचैन रहती हूँ,
हाथ थामकर गले लगाओगे क्या?

©amrit

बिखरे हुए से अंधेरे हैं मुझमें, ऐसी रातों को तुम अपनाओगे क्या? अक्सर खयालों से बेचैन रहती हूँ, हाथ थामकर गले लगाओगे क्या? ©amrit

#endure_rhythm

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