वक्त का पुकार पुकार रहा हैं वक्त ,मांग रहा तुम्हार | हिंदी कविता

"वक्त का पुकार पुकार रहा हैं वक्त ,मांग रहा तुम्हारा रक्त वक्त के पास भी वक्त नहीं है अभी बचा इतिहास एक बार फिर से इतिहास रचा मच रही संसार में जिस प्रकार त्राहिमाम..(१) लग रहा है,होगा पृथ्वी का संपूर्ण खात्मा बार बार बोल रहा मन ,कांप रहा आत्मा जिस प्रकार अस्त, ब्यस्त, त्रस्ट, है जहां हो रहा है, आदमी का मरण जहां तहां..(२) डर रहा है, मजबूरियों के संग जी रहा है शांत है फिर भी अशांत है,क्या यह खेल है सांस चल रही है,फिर भी आस जल रही है जिंदा रह के भी,लास है, लासो का ढेर हो रही है....(३) इसी लिए पुकार रहा है वक्त, मांग रहा है रक्त जहां भी रहो,संभलो और संभालो जीवन हो सके तो ,रक्षण करो जीवन का सदा असहाय को साथ दो निभाओ मर्यादा...(४) जीवन मरण का चक्र जो चल रहा है आज मिट रहे मानव जिस प्रकार देखते ही देखते दिख रहा काल चक्र,नहीं मिल रहा कोई तर्क सुन लो वक्त का पुकार, कम करो रफ्तार...(५)"

 वक्त का पुकार
पुकार रहा हैं वक्त ,मांग रहा तुम्हारा रक्त
वक्त के पास भी वक्त नहीं है अभी बचा
इतिहास एक बार फिर से इतिहास रचा
मच रही संसार में जिस प्रकार त्राहिमाम..(१)

लग रहा है,होगा पृथ्वी का संपूर्ण खात्मा
बार बार बोल रहा मन ,कांप रहा आत्मा
जिस प्रकार अस्त, ब्यस्त, त्रस्ट, है  जहां
हो रहा है, आदमी का मरण  जहां तहां..(२)

डर रहा है, मजबूरियों के संग जी रहा है  
शांत है फिर भी अशांत है,क्या यह खेल है
सांस चल रही है,फिर भी आस जल रही है
जिंदा रह के भी,लास है, लासो का ढेर हो
 रही है....(३)

इसी लिए पुकार रहा है वक्त, मांग रहा है रक्त
जहां भी रहो,संभलो और संभालो जीवन
हो सके तो ,रक्षण करो जीवन का सदा
असहाय को साथ दो निभाओ मर्यादा...(४)

जीवन मरण का चक्र जो चल रहा है आज
मिट रहे मानव जिस प्रकार देखते ही देखते
दिख रहा काल चक्र,नहीं मिल रहा कोई तर्क
सुन लो वक्त का पुकार, कम करो रफ्तार...(५)

वक्त का पुकार पुकार रहा हैं वक्त ,मांग रहा तुम्हारा रक्त वक्त के पास भी वक्त नहीं है अभी बचा इतिहास एक बार फिर से इतिहास रचा मच रही संसार में जिस प्रकार त्राहिमाम..(१) लग रहा है,होगा पृथ्वी का संपूर्ण खात्मा बार बार बोल रहा मन ,कांप रहा आत्मा जिस प्रकार अस्त, ब्यस्त, त्रस्ट, है जहां हो रहा है, आदमी का मरण जहां तहां..(२) डर रहा है, मजबूरियों के संग जी रहा है शांत है फिर भी अशांत है,क्या यह खेल है सांस चल रही है,फिर भी आस जल रही है जिंदा रह के भी,लास है, लासो का ढेर हो रही है....(३) इसी लिए पुकार रहा है वक्त, मांग रहा है रक्त जहां भी रहो,संभलो और संभालो जीवन हो सके तो ,रक्षण करो जीवन का सदा असहाय को साथ दो निभाओ मर्यादा...(४) जीवन मरण का चक्र जो चल रहा है आज मिट रहे मानव जिस प्रकार देखते ही देखते दिख रहा काल चक्र,नहीं मिल रहा कोई तर्क सुन लो वक्त का पुकार, कम करो रफ्तार...(५)

#वक्त का पुकार

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