खुद पर रखो विश्वास क्योंकि गहरा हो समन्दर कितना भी
सीप की मोती की आस रखो
नज़रों में खटकेंगे ज़रूर लोगों की
पर शमशीर में अपनी तलवार रखो
वार अपने हुनर से करना ज़माने में
होंठो को बन्द कर, इरादों में जान रखो
सब अच्छा होगा खुद पर विश्वास रखो
गहरा हो समन्दर कितना भी
सीप की मोती की आस रखो
टक राकर चट्टानों से कुछ ना मिलेगा किसने कहा
मांझी की ज़िद्द अपने अंदर बरकरार रखो
तूफान रास्तों में आएंगे तेरे हर बार गरज के साथ
गर्दिश भी गुज़र जाएंगे खुद में इख्तियार रखो
सब अच्छा होगा खुद पर विश्वास रखो
गहरा हो समन्दर कितना भी
सीप की मोती की आस रखो
शाइस्ता रंजिश करेंगे तेरे अपने तेरे ही खातिर
अंधेरे में भी पृथ्वीराज की तरह आंखों में उजियार रखो
शराफत का सिला नफरत से देगी दुनिया
खुशनसीब समझ खुद को अपने ज़मीर पर ऐतबार रखो
सब अच्छा होगा खुद पर विश्वास रखो
गहरा हो समन्दर कितना भी
सीप की मोती की आस रखो
नज़रों में खटकेंगे ज़रूर लोगों की
पर शमशीर में अपनी तलवार रखो
©Durga Prasad
गहरा हो समन्दर कितना भी
सीप की मोती की आस रखो
नज़रों में खटकेंगे ज़रूर लोगों की
पर शमशीर में अपनी तलवार रखो
वार अपने हुनर से करना ज़माने में
होंठो को बन्द कर, इरादों में जान रखो