*कविता- " मां"*
जीवन पथ पर
अमिट छाप सी लगती है।
अनुभव की रेखाएं
अब माथे पर दिखती है।
दाढ़ी और बत्तीसी भी तो,
अब हिलने लगती है।
सिर पर सफेद चांदी सजी,
अनुभव की मोहर लगती है।
देखा सब कुछ इन आंखों ने,
अब थकन सी लगती है।
मुझे तो यह माता यशोदा,
मरियम, टैरेसा लगती है।।
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@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
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